“भरोसे की कब्र: आदिवासी जमीनों पर कब्ज़े का सिस्टम” मग्गू सेठ फाइल्स — भाग 3

जितेन्द्र कुमार जायसवाल | बलरामपुर-रामानुजगंज, छत्तीसगढ़
“कानून कहता है कि आदिवासी की ज़मीन सिर्फ आदिवासी को बेची जा सकती है। लेकिन ज़मीनी हकीकत कहती है — जो पैसेवाला है, वही मालिक है।”
पहाड़ी कोरवा समाज की ज़मीनें अब खेती के लिए नहीं, बल्कि कमाई के लिए कब्जाई जा रही हैं। और इस कब्जे में सिर्फ दलाल नहीं, कई स्तर की सरकारी चुप्पियाँ भी शामिल हैं।
🛑 कैसे होता है कब्ज़ा? — एक सुनियोजित मॉडल
1. पहले भरोसा जीतो:
गाँव में कोई सेठ आता है, “मैं तुम्हें लोन दिलवा दूँगा”, “तुम्हारी बेटी की शादी में मदद करूँगा”, या “सरकारी पट्टा पास करवा दूँगा” — और यही होती है पहली चाल।
2. फिर दस्तखत और अंगूठा:
अनपढ़ आदिवासी से सादे कागज़ों पर दस्तखत करवा लिए जाते हैं। उन्हीं दस्तावेज़ों को रजिस्ट्री, विक्रय अनुबंध या कब्जा प्रमाण पत्र में बदला जाता है।
3. कब्ज़ा शुरू होता है:
खेत में सेठ के मजदूर आते हैं
तारबंदी होती है
पुलिस को ‘सूचना’ दी जाती है कि “हमने ज़मीन ली है”
4. विरोध हुआ तो दमन:
“धारा 107/116” में चालान
“अवैध कब्जा” की झूठी शिकायतें
थाना स्तर पर ‘समझौता’ का दबाव
और सबसे ख़तरनाक: आत्महत्या या आत्मदाह की धमकी
👥 कौन है सिस्टम में शामिल?
🔹 ग्राम सचिव: गुमराह दस्तावेज़ों को पंचायत की मुहर देता है
🔹 पटवारी: नक्शा और रिकॉर्ड में बदलाव करता है
🔹 तहसीलदार: सब जानते हैं, फिर भी “नोटिंग” तक सीमित रहते हैं
🔹 पुलिस: जब पीड़ित थाने जाता है, तो जवाब मिलता है — “सिविल मामला है, कोर्ट जाओ”
📊 कुछ महत्वपूर्ण केस स्टडी:
भैराराम (पहाड़ी कोरवा): रजिस्ट्री के बाद जमीन खाली करने का दबाव, बार-बार धमकी, और अंततः आत्महत्या।
छेदीलाल (उराँव): 10 एकड़ जमीन पर कब्जा, विरोध करने पर चोरी और मारपीट के झूठे केस में जेल।
सीता बाई (कोरवा): पेट भरने के लिए खेत बेचा, लेकिन पेमेंट नहीं मिला। अब उसी खेत में मजदूरी कर रही है।
⚖️ कानून है, लेकिन असर नहीं
SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, भूमि संरक्षण कानून, और राजस्व संहिता में स्पष्ट प्रावधान हैं। लेकिन क्या आपने कभी सुना कि किसी तहसीलदार को दोषी ठहराया गया हो? नहीं — क्योंकि हर शिकायत “निराकृत” दिखा दी जाती है।
❓ क्यों चुप हैं चुने हुए प्रतिनिधि?
जब किसी आदिवासी की जमीन कब्जाई जाती है, तो सरपंच, जनपद सदस्य, विधायक — सब चुप क्यों?
क्यों नहीं उठती विधानसभा में आवाज़?
क्या उन्हें ‘मग्गू सेठ’ से लाभ पहुंचता है?
📍 अगले भाग में पढ़िए:
🔹 “खामोश पुलिस, ताक़तवर दलाल: स्थानीय सत्ता का अंधा गठजोड़”
जहाँ हम दिखाएंगे कि थाने में बैठा सिपाही भी सेठ के नाम पर काँपता है।
✍️ जारी रहेगा…
“मग्गू सेठ फाइल्स” अब सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं, ग्रामीण न्याय की आवाज़ बन रही है।
यदि आपके पास भी कोई केस हो — हमें ज़रूर बताएं।