धर्मनिरपेक्षता विरुद्ध धर्मपरायणता
आज से सैकड़ों साल पहले जब भारतीय उप महाद्वीप पर भारतीय संस्कृति और सभ्यता की छाप पूरी तरह से छाई हुई थी। वेद, पुराण और उपनिषदों के आधार पर चलने वाला हिंदु दर्शन पूरे विश्व में छाया हुआ था विज्ञान भी उतनी तरक्की नहीं कर पाया था जितना यहां की संस्कृति और धर्म में ब्रह्मांड के राज छुपे हुए थे खगोलीय घटनाओं और प्रकृति के संरचना से संबंधित बातों का भी जिक्र यहां के धर्म ग्रंथों में समाहित था, यहां के तक्षशिला, नालंदा विश्वविद्यालयों में भी जीवन दर्शन एवं ब्रह्मांड के रहस्यों का अध्ययन करने पूरे विश्व से लोग आते थे।
समय चक्र बदला धीरे धीर दुनिया में अन्य सभ्यताओं और धर्मों का उदय हुआ जिसके अंतर्गत ईसाइयत, मुस्लिम, बुद्धिज़्म आदि धर्मो को मानने वाले लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ने लगी, विश्व के अनेकों भूभागों की जनसांख्यिकी भी तेजी से बदली कुछ भाषाओं के आधार पर कुछ धर्मों के आधार पर अलग देश बने। भारतीय उपमहाद्वीप भी इससे अछूता नहीं रहा इसके कई भूभागों में इस्लाम, बुद्धिज़्म एवं ईसाइयत को मानने वालों की संख्या भी बढ़ने लगी सबसे ज्यादा जनसांख्यिकी में परिवर्तन 11वी शताब्दी के बाद के वर्षों में हुआ।जब इस्लाम धर्म का उदय हुआ था तब विदेशी आक्रांताओं द्वारा तलवार की जोर पर भी अपने धर्म का विस्तार किया गया एवं यहां की पौराणिक संस्कृति को भी नष्ट कर अपनी सभ्यता एवं धर्म का प्रचार किया, जो 1900 शताब्दी आते तक इस उप महाद्वीप के बड़े भाग पर अपना कब्जा जमाने में सफलता हासिल कर लिए। भारतीय उप महाद्वीप का उत्तर का इलाका अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं पूर्व का इलाका (बंगला देश) हमसे अलग होकर अलग अलग देश बने। भारत अब एक उपमहाद्वीप न होकर छोटा सा एक देश बन चुका था, जिसको यहां के नेताओं द्वारा 1947 के बाद धर्मनिरपेक्षता की प्रोगशाला बना दिया जहां कहने को तो यह हिंदुस्तान था परंतु सभी धर्मों को मानने वाले देश के रूप में प्रस्तुत किया गया समय बदलता गया कुछ वर्षों में अनेकों कानूनों के माध्यम से अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम समाज को और ज्यादा अधिकार दिए गए जिससे वह अपने धर्म एवं रीति रिवाजों को मानने के लिए संविधान से बंधे न रह पाए कई मायनों में उनके आंतरिक धार्मिक मामलों में भारत का संविधान उन पर लागू नहीं हो पाता था। जिस देश की मूल भावना संविधान पर टिकी थी वहां बहुसंख्यक हिंदू समाज अपने ही अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता से वंचित होने लगा जिसका ज्वलंत उदाहरण कश्मीर में धारा 370,35A , 30 एवं वारशिप एक्ट 1991है।
भारत में धीरे धीरे कुछ धार्मिक संगठनों एवं हिंदुओं की जनजागरूकता के कारण समय चक्र में परिवर्तन हुआ भारत में तुष्टिकरण की सरकारों की विदाई हुई फिर 2014 को भारत में एक ऐसी सरकार आई जो भारतीय जनता को समान अधिकार , समान कानून एवं हाशिए में जा चुके हिन्दू समाज को उनके धर्म एवं सामाजिक रूप से मजबूत और जागरूक करना शुरू किया एवं गुलामी की मानसिकता को त्याग कर तुष्टिकरण को समाप्त कर देश में समानता लाने लगातार प्रयासरत है, जिसके द्वारा धर्मनिरपेक्षता नहीं धर्मपरायणता को बढ़ावा देने का काम किया जा रहा है। हजारों सालों से भारत की संस्कृति वसुधैव कुटुंब की रही है परंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आक्रांताओं के विरुद्ध यह नीति लागू नहीं होती है हमें धर्मनिरपेक्ष नहीं बल्कि धर्म परायण बनना होगा।
*परविंदर सिंह मोंटी*……….🖋️